#नवगीत – इतने अच्छे दिन मिले
#नवगीत – इतने अच्छे दिन मिले
रोजगार भी छिन गये , मँहगाई की मार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।
नित डीज़ल पैट्रोल की , क़ीमत आँधी चाल।
लिए चलें हर चीज़ को , रंग स्वयं के हाल।
पर्वत ऊँचे हो गये , पेड़ गये पर हार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।
गैस सिलेंडर मूल्य में , वृद्धि हुयी है ख़ूब।
राहत देती थी कभी , गयी सब्सिडी डूब।
वोट दिये उस प्यार का , दिया गज़ब उपहार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।
मँहगा सरसों तेल है , मँहगी रोटी दाल।
पानी मिलता मोल अब , देखो बड़ा कमाल।
आँगन-आँगन चोट है , घायल हर घर-द्वार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।
उँगली उठती हर कटे , रोये कटे ज़ुबान।
आँसू निकलें आँख से , करो इन्हें कुर्बान।।
मौन रहो मुस्क़ान ले , कहते सब अख़बार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।
#आर.एस.’प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना