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2 Dec 2016 · 1 min read

#नवगीत – इतने अच्छे दिन मिले

#नवगीत – इतने अच्छे दिन मिले

रोजगार भी छिन गये , मँहगाई की मार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।

नित डीज़ल पैट्रोल की , क़ीमत आँधी चाल।
लिए चलें हर चीज़ को , रंग स्वयं के हाल।
पर्वत ऊँचे हो गये , पेड़ गये पर हार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।

गैस सिलेंडर मूल्य में , वृद्धि हुयी है ख़ूब।
राहत देती थी कभी , गयी सब्सिडी डूब।
वोट दिये उस प्यार का , दिया गज़ब उपहार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।

मँहगा सरसों तेल है , मँहगी रोटी दाल।
पानी मिलता मोल अब , देखो बड़ा कमाल।
आँगन-आँगन चोट है , घायल हर घर-द्वार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।

उँगली उठती हर कटे , रोये कटे ज़ुबान।
आँसू निकलें आँख से , करो इन्हें कुर्बान।।
मौन रहो मुस्क़ान ले , कहते सब अख़बार।
इतने अच्छे दिन मिले , जनता क्यों लाचार।।

#आर.एस.’प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 1042 Views
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