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30 Jan 2017 · 1 min read

नारी जीवन सतत एक संग्राम है

नारी जीवन सतत एक संग्राम है

हर किसी का ही जग में ये अंजाम है
नारी जीवन सतत एक संग्राम है
उसको लेकर जनम से ही मरने तलक
ना सुकूँ है कोई और ना आराम है

उम्र सारी वो घर में ही कट जाती है
जाने हिस्सों में कितने वो बँट जाती है
घर में सब का ही जीवन बनाते हुए
एक दिन नारी यूँ ही सिमट जाती है

कहाँ बेटी जनम सबको मिल पाता है
उसका होना कहाँ सबको झिल पाता है
कोख में हत्या की , होती हैं साजिशें
फूल मुश्किल से जगमें ये खिल पाता है

भेड़िये इन सभी को हैं फिर नोचते
उम्र बच्चों तलक की नहीं सोचते
जिसको देखो वही बस रुलाता यहाँ
आँसुओं को हैं कितने यहाँ पोछते

बात करते हैं उनसे सभी प्रेम की
प्रेम करना किसी को भी आता नहीं
यूँ बना कर के देवी तो हैं पूजते
ये मगर दंभ पौरुष का जाता नहीं

जिक्र इज्जत का जब भी कभी आता है
एक भय सा दिलों में समा जाता है
दोष दुष्कृत्य में उसका होता नहीं
फिर भी दोषी उसी को कहा जाता है

फिर भी दोषी उसी को कहा जाता है

सुन्दर सिंह

Language: Hindi
931 Views
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