“नहीं छोड़ जाना”
15-2-17
“नहीं छोड़ जाना”
लग कलेजे से कहता-मुझे नहीं छोड़ जाना,
माँ…गुस्सा कितना करो,ना मुँह मोड़ जाना…
दूर हुआ तो लगा,भूल गई इतना क्यों मुझे,
तेरी कॉल की आवाज़,हुआ है सुने जमाना…
रह-रह तेरी याद आती,एक तेरा आना ना हुआ,
नहीं चाहती घर छोड़ना,ऐसा भी है क्या बहाना…
चाहूं तेरे साथ रहूँ बना,तेरे हाथ का खाना खाॐ,
बरसों बीत गया माँ तुम्हें,अब भी पड़ता मनाना…
गोद में रखकर सर सोता था,तेरा वो सहलाना,
लगता सदियाँ बीत गया माँ…तेरा वो बहलाना…
याद आती बहुत यहाँ तुम,ना घर होता है जाना,
चलते-चलते थक गया हूँ,मुझे तेरे पास है आना…
“घर,गलियां ये बाग-बगीचे,सब तेरे हैं राह देख रहे,
आजा मेरे राज-दुलारे,जहाँ चलता तेरा मनमाना”….
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“ममता पाण्डेय”