” —————————————- नयना बस बहते हैं ” !!
मंत्री जी के यही आंकड़े , रोज़ शिशु मरते हैं !
और मीडिया किस्से गढ़कर , झूंठ सदा गढते हैं !!
मां की गोदें सूनी सूनी , मातम यहां वहां है !
होती हैं बयानबाजियां , नयना बस बहते हैं !!
होते रोज़ विलाप यहां हैं , होते भी हैं क्रंदन !
यहां चिकित्सक नहीं मसीहा , पेशा बस करते हैं !!
ऑक्सीजन आपूर्ति बंधक , कैसी मानवता है !
नोटबन्दी चाहे हो जाये , लाभ जुड़े रहते हैं !!
राजनीति हैं यहां चरम पर , केवल दोषारोपण !
सेवा मदद कौन चहता है , भाव यही कहते हैं !!
निर्धन की है दौड़ वहां पर , शुल्क जहां ना लागे !
कहाँ जाए बचकर बेचारा , देव वहां ठगते हैं !!
सरकारें सोई रहती हैं , जागे दुर्घटना से !
इसीलिये जनता के आंसू , सदा यहां बहते हैं !!
बेबस जनता करे प्रदर्शन , और हाथ क्या उसके !
प्रजातंत्र शासन चतुरों का , सुधिजन यह कहते हैं !!
बृज व्यास