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7 Feb 2017 · 1 min read

” ——————————- धूप सी खिलती है ” !

रंग यहाँ खिलते हैं , मस्तियाँ छलकती है /
मुस्कराकर ज़िन्दगी , यहाँ गले मिलती है //

संग यहाँ जीना है , संग यहाँ मरना हैं /
उम्र सीढियों से यहाँ , धूप सी फिसलती है //

हमने भरोसा किया , भरोसे पे जीते हैं हम /
काँटों पे दिल रखकर , यहाँ कली खिलती है //

हमने किये ही नहीं , सत्य से समझोते /
दर्द हो शिखर पर तो , पीड़ा मचलती है //

माँ खड़ी दरवाजे , मेरी भूख उसकी है /
वक्त की तराजू पर , आरजू मचलती है //

दबे पांव आँखों में , सपने उतरते हैं /
इठला के अम्बर में , साँझ सदा ढलती है //

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