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7 Feb 2017 · 1 min read

धरती माँ का खत संतानों के नाम

मैं ? धरती माता देना मेरी फ़ितरत है और लेना तेरी नियति है .|रोटी ;पानी ;कपडा़ तेरी आवश्यकतायें हैं जिनको पूरी करने के लिए तू मेरी वन सम्पदा पर आश्रित है… पर तेरा लालच दिन पर दिन बढ़ता गया… तू आधुनिक बनने के चक्कर में मुझे तबाह करता गया.. कच्चे घरों की जगह इमारत ;रोटी की जगह पिज्जा ;सूती ;ऊनी वस्त्रों की जगह रेशमी कपड़े जिनको तैैयार करने के लिए फैक्टरियाँ लगाईं तो पानी कैसे स्वच्छ रहता.तूने चारो ओर पैर पसारे जंगल से जानवर ? भी मारकर निकाले.. तू हर चीज़ पर अपना आधिपत्य जमाता गया और मुझे कमजोर बनाता गया……
बस अब और नहीं सहन होता है.. मैं थक गयी ;कमजोर हो गई ….मेरे वस्त्र (पेड़ ;पौधे) सब तूने उतार कर निर्वस्त्र कर दिया मुझको….अब ठन्ड में काँपूगी नहीं क्या? आज ठन्ड की वजह से काँपी तो तू हिल गया.. यदि अपनी जिंदगी की परवाह है तो सोच मेरे बारे में.. जो कपड़े उतारे हैं उन्हें पहना और मुझे सशक्त बनाकर खुद भी चैन से जी….
रागिनी गर्ग

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 610 Views
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