दो शेर
दो शेर
१, गुल -ऐ- शौक में कांटे आये हाथ,
कितना फख्र था हमें अपने गुलिस्तां परें।
२, ग़मों की रात मिली हमें तमाम उम्र
मगर मौत में यह सवेरा कैसाें।
दो शेर
१, गुल -ऐ- शौक में कांटे आये हाथ,
कितना फख्र था हमें अपने गुलिस्तां परें।
२, ग़मों की रात मिली हमें तमाम उम्र
मगर मौत में यह सवेरा कैसाें।