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27 Sep 2016 · 1 min read

दो मुक्तक—–

जुल्फ में तेरी उलझते जा रहा हूँ रात – दिन
नाम तेरा लिख के गीत गा रहा हूँ रात- दिन
देख कर एक नजर में ना जाने तूने क्या किया
आँशुओ का मरहम दिल पे लगा रहा हूँ रात -दिन
©विवेक चौहान एक कवि

मुफलिसी कब ये दूर जायेगी पापा
ज़िन्दगी कब खुल के हंसायेगी पापा
भीगा बहुत हूँ मैं अंबर की बारिश में
ये जमी कब पानी बरसायेगी पापा

स्वंयरचित रचना सर्वाधिकार प्राप्त
©विवेक चौहान एक कवि
बाजपुर , ऊधम सिंह नगर
(उत्तराखण्ड)7500042420

Language: Hindi
264 Views
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