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26 Mar 2017 · 4 min read

देश मेरा मेरी पहचान

” देश मेरा मेरी पहचान ”
——————————-

देश मेरा है मेरी जान ,
सदा मेरा पल-पल अभिमान |
इसकी रक्षा धर्म है मेरा ,
देश मेरा मेरी पहचान ||
———————————-

किसी भी इंसान की वास्तविक पहचान उसके अपने स्वदेश से होती है | स्वदेश ही है ,जो अपनी सौंधी मिट्टी की महक से इंसान के जीवन को महका देता है | स्वदेश का नाम आते ही हमारे अंत:करण और शरीर में जो सिहरण उत्पन्न होती है , वह एक अजीब सा कोमल एहसास होता है | यह नाम चाहे भारत का हो , तिरंगे का हो ,जन-गण-मन का हो , वन्देमातरम् का हो या इंकलाब और जय हिन्द का हो | यह सभी हमारे अंतस में एक सुखद एहसास बनकर प्रवाहित होते रहते हैं | जिस प्रकार हमारी रगों में खून दौड़ता है ,उसी प्रकार देशभक्ति का विचार एक सद्गुण बनकर दौड़ता है | मेरा देश न केवल मेरी पहचान है , बल्कि अनेक सभ्यताओं , संस्कृतियों , संस्कारों , इतिहास , भूगोल , इत्यादि की विशिष्ट पहचान है | हमारी प्राचीनतम सिन्धुघाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता की पहचान पूरे विश्व पटल पर भारत के नाम पर ही सुशोभित हो रही हैं | यहाँ का ऐतिहासिक स्वरूप अपनी विविधता लिए हुए है और अपनी -अपनी विशिष्ट छाप के कारण वैश्विक स्वरूप में विद्यमान है | वेद ,पुराण ,महाभारत ,रामायण ,गीता जैसे शाश्वत ग्रंथों की जब भी चर्चा होती है तो यही तथ्य उभर कर आता है , कि ये भारत देश की अमूल्य धरोहरें हैं | जब भी ऋषि संस्कृति और संस्कृत का उल्लेख होता है तो भारत की अभूतपूर्व और गौरवमयी गरिमा का विशेष रूप से बखान होता है | भारतीय परम्परा , रीति – रिवाज, कला और संस्कृति की जब भी बात होती है तो इनकी पहचान भारत के नाम से ही होती है ,जैसे – जैन धर्म, बौद्ध धर्म ,हिन्दू धर्म इत्यादि अनेक धर्मों की जन्मभूमि और कर्मभूमि भारत की ही पावन धरा रही है और इसी के कारण इनकी पहचान है | षड्दर्शनों यथा – सांख्य -योग , न्यय – वैशेषिक ,पूर्व मीमांसा और वेदान्त इन सभी के दार्शनिक विचारों ने सम्पूर्ण विश्व में अपनी अमिट छवि बना रखी है , जिसकी केन्द्रीय पहचान भारत ही है |
भौगोलिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो बहुत सी भौगोलिक विशेषताऐं भारत में विद्यमान हैं जो भारत के नाम से ही पहचानी जाती हैं जैसे – विश्व की सबसे प्राचीनतम वलित पर्वतश्रेणी – अरावली , सबसे नवीन पर्वतश्रेणी- हिमालय , सबसे ऊँचा रणक्षेत्र- सियाचीन इत्यादि-इत्यादि | यही नहीं भूगर्भिक तौर पर हुई हलचलों तथा कुछ विशेष जड़ी-बूटियों और जैवविविधता की पहचान भी भारत भूमि ही है | यहाँ होने वाली वर्षा भी अपनी पहचान “भारतीय मानसून ” के रूप में करवाती है | स्वयं हिन्द-महासागर भी अपनी पहचान हिन्दुस्तान के महासागर के रूप में सुनिश्चित करवाता है | यह विश्व का एकमात्र महासागर है , जिसका नामकरण किसी देश के नाम पर रखा गया है | बहुत सारे खनिज ,मसाले ,खाद्यान ,फल और पशुउत्पाद ऐसे हैं जो केवल भारत में ही उपलब्ध हैं और भारत के नाम से ही जाने जाते हैं | आज वैश्विक पटल पर अनेक भारतीय उत्पादों को “वैश्विक भौगोलिक सूचकांक” में भारत के नाम से ही शामिल किया गया है | अनेक भारतीय आदिवासी समूह ऐसे हैं जो केवल भारत में ही पाए जाते हैं जिनकी पहचान भी भारत भूमि ही है |
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि – परिवार , समूह , समाज , संस्था ,समिति ,समुदाय , सांस्कृतिक गतिविधियाँ इत्यादि की कुछ विशेषताऐं इतनी विशिष्ट और अद्भुत हैं कि इनकी पहचान भारतीय समाज और संस्कृति के रूप में ही होती है | सामाजिक-संगठनात्मक स्वरूपों की पहचान भी भारतीयता से लबरेज रहती है | हमारे देश भारत ने विविध भाषाओं को जन्म और पहचान दी है ,जो कि मानवीय अभिव्यक्ति के लिए एक सशक्त जरिया है | वर्तमान में योग की पहचान भी भारत ही है | यह कहना उचित है कि भारत “विश्व-गुरू” तो था ही अब ” योग-गुरू” बनकर हमें वैश्विक पटल पर सदा-सर्वदा के लिए मंच पर ले आया है | भारत ही वह देश है जिसने विश्व को “शून्य ” दिया जिससे गणित के क्षेत्र में क्रांति पैदा की | इसी प्रकार हम देखते हैं कि न केवल धरा पर अपितु अंतरिक्ष में भी भारत ने हमारी पहचान बनाई हैं | बहुत सारे कृत्रिम उपग्रह , अंतरिक्ष यान भारत की शान और पहचान बनकर परिक्रमण पथ पर निरन्तर गतिमान हैं | अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से भारत ने अपनी विशेष पहचान बनाकर हमें नई पहचान दिलवाई है | यह गौरव का विषय है कि जब भी वैश्विक पटल पर आर्थिक मंदी आई है , सभी देशों में वह आफत बनकर छाई है , परन्तु हमारे देश में आर्थिक मंदी कुछ नहीं बिगाड़ पाई है | विविध क्षेत्रों में अनेक भारतीय कंपनियों और विशिष्ट व्यक्तियों को पहचान भारत ने दिलवाई है | औपनिवेशिक काल में यह देखा गया था कि किस प्रकार अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का विदोहन किया और किस प्रकार “संसाधन और धन निष्क्रमण ” पूरे विश्वास के साथ किया और दूसरे देशों में भारतीय पहचान के रूप में उनका निर्यात भी किया |
हमारे देश की पहचान एक निष्ठावान , न्यायप्रिय , अंहिसाप्रिय देश के रूप है और इसके साथ ही “अतिथि देवो भव : ” की मान्यता का प्रभाव भी विशिष्ट है | हमारे यहाँ विविध संस्कृति और धर्मों के लोग निवास करते हैं तथा शरणार्थी भी शरण प्राप्त करते हैं | जब भी विश्व समुदाय में कोई अप्रिय घटना घटित होती है तो वैश्विक समुदाय के लोगों को भारत सुरक्षित देश नजर आता है | व्यक्तिगत रूप से हम देखें को यह सुनिश्चित होता है कि “मेरा देश मेरी पहचान ” उक्ति यथार्थ और उचित है क्यों कि – सदियों से भारत ने हमें पहचान दिलाई है | इस प्रकार की पहचान के हम कुछ व्यक्तिगत दृष्टांत देख सकते हैं जैसै — राम ,कृष्ण ,अर्जुन , अभिमन्यु , द्रोणाचार्य , भीष्म , शंकर ,रामानुज , पतंजलि , पाणिनी , स्वामी विवेकानन्द , महात्मा गाँधी ,रवीन्द्र नाथ टैगौर ,डॉ० भीमराव अंबेडकर , सुभाष चन्द्र बोस , कल्पना चावला , डॉ० ए०पी०जे०अब्दुल कलाम , मुशी प्रेम चंद , आर्यभट्ट , नागार्जुन , महात्मा बुद्ध , महावीर स्वामी , गुरू नानक , डॉ० एम०एस०स्वामीनाथन ,डॉ० वर्गीज कुरियन, नरेन्द्र मोदी इत्यादि-इत्यादि अनेक महान् व्यक्तियों की पहचान स्वदेश रहा है और ये स्वयं भी देश की आन-बान-शान रहे हैं | अंत में यही तथ्यात्मक और गूढ़ भावाभिव्यक्ति उजाकर होती है कि “मेरा देश मेरी पहचान ” है |
——————————
डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”

Language: Hindi
Tag: लेख
1446 Views
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