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11 Feb 2017 · 1 min read

देर आये,दुरुस्त आये

देर आये,दुरुस्त आये
हर्फ़ों का बाज़ार साथ लाये।
हर एक पहलू को समझ कर आये
पन्नो में सजाते जाए,ये हर्फ़ ही सबको दर्द समझाये।
विकास का मुद्दा नझर ना आये
नेताओं की जबान फिसलती जाए।
ग़रीबी ने पैर फैलाए
आरोप में आरोप लगाए
भ्र्ष्टाचार बढाते जाये
बेरोज़गारी बढाते जाये।
दंगे सुलगते जाए
धर्मो की आड़ में,इंसानियत का लहू बहाए।
हैवानियत भी बढ़ती जाये
इंसा भी जब शैतान बन जाये
स्त्रियों का चिरहरण कर जाये
पत्थर को पूजता जाये,इंसा के काम न आये
पत्थरों को वस्त्र पहनाए, इंसा ठंड में सिकुड़ता जाये।
पत्थरों को पकवान चढाये,इंसा के लिए अकाल पड़ जाये
चार दिवारी में पत्थरों को कैद रखा जाये,इंसा का दम फुटपाथों में टूटता जाये।
हर्फ़ों का बाजार भी सजता जायें
समाज की हक़ीक़त को दर्शाए।
दर्द को हर्फ़ों में समेटकर दर्द को महसूस करवाये।
अन्याय के खिलाफ़ हर्फ़ों का भंडार लगाये।
भूपेंद्र रावत
10/01/2017

Language: Hindi
2 Likes · 4620 Views
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