दीप मुझको बना दो ना
मुझको दीपक बना दो ना
मैं
तेरे अँधेरे कमरे में यूँ ही जलता रहूँ
कुछ ना दिखे
पर ताप से अपनें
यूँ ही तपता रहूँ
ज़िन्दगी के साँस को
खोता रहूँ,गाता रहूँ
मुझे तिल-तिल जला दो ना
दीप मुझको बना दो ना।
~~अनिल कुमार मिश्र
मुझको दीपक बना दो ना
मैं
तेरे अँधेरे कमरे में यूँ ही जलता रहूँ
कुछ ना दिखे
पर ताप से अपनें
यूँ ही तपता रहूँ
ज़िन्दगी के साँस को
खोता रहूँ,गाता रहूँ
मुझे तिल-तिल जला दो ना
दीप मुझको बना दो ना।
~~अनिल कुमार मिश्र