दीन हीन बचपन
दोष क्या मेरा मुझे बतादो
फलसफा भाग्य का समझादो।
गलती ऐसी हुई क्या मुझसे
उस गलती का नाम बतादो।
मैं बालक अबोध अज्ञानी
सर पे बोझ मुसीबत भारी,
दुखड़ा अपना कहूँ मैं किससे
उस दर का कोई पता बतादो।
मेरा भी एक छोटा सपना
स्नेह का हाथ धरे कोई अपना,
स्नेह भरा सुख पाउँ कैसे
इस सुख का कोई राह दिखादो।
मंदिर भटका मस्जिद भटका
भक्त मिले कोई मिला न अपना
भुख मिटे मुझ दीन- हीन का
ऐसा कोई जतन करादो।
द्वार खड़ा मैं भगवन तेरे
भक्त बना मुझे शरण में ले ले,
भक्त बनूं प्रह्लाद के जैसा
सचिन” हमें कोई युक्ति बतादो।
©®पं.सचिन शुक्ल