दिलों का आइना बिख़रा हुआ है
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जिसे देखो वही टूटा हुआ है
दिलों का आइना बिख़रा हुआ है
मुहब्बत में मुझे धोख़ा हुआ है
मगर अफ़सोस क्यूँ चर्चा हुआ है
किधर जाएँ दिले नादान लेकर
बड़ा मुश्किल हरिक रस्ता हुआ है
मेरे आगोश में आए हो जब से
शबो-दिन जैसे अब ठहरा हुआ है
हवा छूकर तुम्हे जब आ गई तो
लगे सारा जहां महका हुआ है
वतन में चार सूं नफ़रत है “प्रीतम”
यहाँ माहौल तो गंदा हुआ है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
१९/०९/२०१७
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