दहेज
पापा मांगे मे दहेज
करें कवनो ना परहेज
बबूआ बी.ए. कईके बईठल
अब दुआरी पर
मन रमल ताड़ी पर ना।
गुण कौनों नाहीं एक
चाहीं गाड़ीये दहेज,
बबुआ नजर गड़वले
बाड़ें होन्डा गाड़ी पर
मन रमल ताड़ी पर ना।
नाहीं गांव में कवनो साख
रुपया चाहीं एके लाख,
बबुआ दिनों रात
सुतल रहे घारी में
मन रमल ताड़ी पर ना।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”