दर्द है फिर भी जिए जा रहा हूँ
तुम्हारे बगैर भी जिए जा रहा हूँ
दर्द है फिर भी पिए जा रहा हूँ
लबों को अपने सिये जा रहा हूँ
ग़म जुदाई का पिए जा रहा हूँ
क्या जज़्ब (आकर्षण) है उनके चेहरे मे
जनाब इसी जनून में जिये जा रहा हूँ
गैर नही आज भी वो हमसे
यही आस लिए जिये जा रहा हूँ
गज़ल है वो मेरे हर एक पन्ने की
तभी तो मैं भी लिखे जा रहा हूँ
गिला नही हमको उनसे कुछ भी
गुमसुम हो जुदाई में जिए जा रहा हूँ
गिर्दाब (बवंडर) में जब अपने ही सितारें है
ग़ुनाह अपने सर लिए जा रहा हूँ
क़ल्ब(दिल) पर राज किये बैठे है
मैं कुर्बान हुए जा रहा हूँ
क़ुसूर तो उनका था ही नही
कब्र अपनी बनाये जा रहा हूँ
असीर(कैद) है भूपेंद्र उनकी यादों के साए में
यादों की असफ़ार (सफ़र)लिए जिए जा रहा हूँ
भूपेंद्र रावत
19।08।2017