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14 Jan 2017 · 1 min read

दर्द बेटियों का

हर्षित था परिवार सबको था किसी का इंतजार

कोई बेटे कोई भतीजे तो कोई पोते को था बेकरार

कुछ पल में बो आई बारी घरभर में गूंजी किलकारी

लगा शायद अपनों के दिल टूटने से बो रो रही बेचारी

आंखें कजरारी जिसकी सूरत चांद से प्यारी

सपने अपने भूल कर हरकोई उसपर बलिहारी

कुदरत का उपहार मिला उसको भी सबका प्यार मिला

बस बेटे की चाह का सबको थोड़ा इंतजार मिला

किलकारी कब बोल हो गईं बातें उसकी अनमोल हो गईं

खाना बनाना सीख गई कब रोटियाँ उसकी गोल हो गईं

फिर जब बो आई घड़ी हरकिसी की उत्सुकता बड़ी

जांच कराया फिर बेटी थी दिल में निर्लज सोच पड़ी

इंसानियत पर वार किया रिश्तों को तारतार किया

दया ना आई अपनी बेटी पर जिसको कोख में मार दिया

मां हरलम्हां रो रही बेटी मां से पूछ रही

बताओ मेरी छोटी बहिन तू क्यों मुझसे छुपा रही

कैसे तुम कैलाशी हो अमरनाथ हो या काशी हो

मेरे प्रभू मुझको बता क्या तुम भी भारतवासी हो

तू सो रहा तेरा जग रो रहा

तेरी भूमि पर यह सब क्या हो रहा

बेटे को पढाया हर ओर आगे बड़ाया

बेटी को क्यों दहलीज के अंदर छुपाया

ना पड़ने दिया ना आगे बड़ने दिया

हाथ पीले कर घर से घर में रहने दिया

दुनिया ने सताया हर गम अपना छुपाया

बेटी ने एक नहीं दो घरों को स्वर्ग बनाया

अब तो रहने दो उनको भी कुछ कहने दो

एक बार बेटियों को बिना बंदिशों के जीने दो

1 Comment · 937 Views
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