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24 May 2017 · 1 min read

दर्द बाहर निकले लगा

है जो सीने मे दर्द भरा
लिखने बैठा तो बाहर निकलने लगा |

बरस बीत गए इसे संजोते संजोते
बचपन मैं थोड़ा कम हो जाता था रोते रोते |

आज सुनी जो एक दास्ताँ तो भर आया गले तक
रोने को जी करता है कुछ पल देर तलक |

इस कलम की स्याही भी अब फीकी पड़ने लगी
दर्द से कलेजे की आंते है जलने लगी |

अश्क़ो से ये शफा भी गिला हो चला
लिखने बैठा जो आज दर्द बाहर निकले लगा |

Language: Hindi
347 Views
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