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4 May 2017 · 1 min read

दर्द पाओगे मुहब्बत का भरोसा न करो

ये बदल जायगी आदत का भरोसा न करो
बैठ कर खाली इबादत का भरोसा न करो

अब छिपे रहते नकाबों में ही असली चेहरे
बस दगा खाओगे सूरत का भरोसा न करो

तुम जमीं से कभी उठने न कदम ये देना
पल की मेहमान है शोहरत का भरोसा न करो

रंक हो राजा या राजा हो भिखारी पल में
आनी जानी है ये दौलत का भरोसा न करो

करते नाराज़ इसे अपने ही कर्मों से हम
और कहते हैं कि कुदरत का भरोसा न करो

‘अर्चना’ दिल से नहीं होती मुहब्बत अब तो
दर्द पाओगे मुहब्बत का भरोसा न करो

डॉ अर्चना गुप्ता

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