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3 Apr 2017 · 1 min read

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू है मेरे गांव को गँवार कहता है।

ऐ शहर मुझे तेरी सारी औक़ात पता है,
तू बच्ची को भी हुस्न ए बहार कहता है।

थक गया हर शख़्स काम करते करते,
तू इसे ही अमीरी का बाज़ार कहता है।

गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।

वो मिलने आते थे कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।

बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें,
अंधी भ्रस्ट दलीलों को दरबार कहता है।

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।

हरेन्द्र सिंह कुशवाह एहसास

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