नोटबंदी
सियासत क्यों घबरा रही है।
जब नोटबंदी चरमरा रही है।
बडी मछलियां लज्जा रहीं हैं।
गीत पागलपन के गा रही हैं।।
शर्म धोखेबाजी से आ रही है।
जनता हय्या ये दिखा रही है।।
प्रीत देशप्रति हृदय भा रही है।
एकजुट जनता हो जा रही है।।
खिलेंगे इंसानियत के फूल देख।
खुशबू मन सहला-सी रही है।।
मोदी जी ने किया सिर माथे है।
इंसानियत यही तो फरमा रही है।।
आओ प्यार का गीत गुनगुनाएं।
मुहब्बत सिर यही उठा रही है।।
साथ सच्चाई का दीजिए जरा।
रूह क्यों इसपर लज्जा रही है।।
जमीं से उगा मोदी जी का नाम।
नभ में भी जो नहीं सभा रहा है।।
ऐसे कर्म करो दुनिया मिशाल दे।
इंसानियत यही तो फरमा रही है।।
“प्रीतम”तू प्रेम का सागर बन रे!
नदियां मिल तुझे ये सिखा रही हैं।।