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8 Sep 2017 · 1 min read

तेरी आँख का काजल

घटा घनघोर से प्यारा तुम्हारी आँख का काजल
घनेरी साँझ से गहरा तुम्हारी आँख का काजल

तुम्हारी जुल्फ के साये में जब भी सांस लेता हूँ
हमारी जान लेता है तुम्हारी आँख का काजल

कभी राधा कभी मीरा कभी सीता बनाता है
तुम्हें नव रूप देता है तुम्हारी आँख का काजल

हिमालय की बुलंदी पर घाना जो मेघ दिखता है
उसी जैसा तेरे रुख पर तुम्हारी आँख का काजल

मृग कस्तूरी सा छाया है मेरी आँखों मे ये बसकर
मुझे पागल किये जाता तुम्हारी आँख का काजल

ऋषभ को तुम कहो राधे कहो चितचोर चाहे जो
मगर चित को चुराये है तुम्हारी आँख का काजल

2 Likes · 516 Views
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