तू यूँ कलंकित ये भाल मत कर
ग़ज़ल
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यहाँ पे कोई बवाल मत कर
तू बेवजह के सवाल मत कर
अभी ख़िज़ां में बहार आई
बुरा तू इसका ये हाल मत कर
ये जिन्दगी का सफ़र कठिन है
ये सोच खुद को निढाल मत कर
हो जाए आशिक न यूँ ज़माना
सभी को ऐसे निहाल मत कर
बता दे हमको तू राज़-दिल के
तू ऐसे काली ये दाल मत कर
ये दिल है मेरा न कोई मुर्गा
इसे तू ऐसे हलाल मत कर
अभी तू तौबा गुनह से कर ले
तू यूँ कलंकित ये भाल मत कर
उरूज मिलती है मुश्किलों से
मिली तो इसका जवाल मत कर
तेरा हूँ आशिक़ ——मैं मुद्दतों से
फ़रेबी-ए-हुस्न-ओ-जमाल मत कर
तू बढ़ जा मंजिल के सिम्त ऐ दिल
तू मुश्किलों का ख़याल मत कर
छोड़ मस्ती अभी तू “प्रीतम”
हुआ बहुत अब धमाल. मत कर
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
09/09/2017
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121 22 121 22
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