Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Jul 2017 · 3 min read

तुम मुझसे क्यूँ रूठी हो

हर साल तो इस समय तक तुम आ ही जाती थी, पता नहीं इस साल क्या हो गया है तुम्हें। तुम्हें तो पता ही है कि हर साल मुझे तुम्हारा कितना इंतज़ार रहता है, फिर भी कुछ सालों से तुम, तुमसे मिलने की मेरी बेचैनी को नज़रअंदाज करती आ रही हो। पहले तो तुम गर्मी की छुट्टियाँ खत्म होने से पहले ही आ जाती थी और हम कितना मजा किया करते थे।

तुम्हारे आते ही सारा का सारा घर एक सौंधी-सौंधी खुश्बू से महकने लगता था। और मैं ही क्या, आस पडोस के सारे लोग भी तुम्हारी खुश्बू से बहकने लगते थे। तुम्हारी आवाज़ में भी एक अजीब सी कशिश है, तुम बोलती हो तो यूँ लगता मानो संगीत बज रहा हो। मुझे आज भी याद है तुम्हारे साथ बिताये वो हसीन पल। तुम्हारे आते ही छाता लेकर निकल पड़ता था मैं, और फिर हम दोनो साथ-साथ ना जाने कितनी दूर तक निकल जाते थे। कई बार तो तुम्हारे प्यार में पूरी तरह भीग जाता था मैं। इसी तरह तुम्हारे साथ नाचते-गाते, उछलते-कूदते पता ही नहीं चलता था कि हम कितनी दूर पहुँच चुके हैं। फिर जब थककर चूर हो जाते तो चच्चा की टपरी पर बैठकर गरमागरम चाय और पकौडे खाते थे। तुम्हारे साथ गरमागरम चाय और पकौडे का मज़ा ही कुछ और होता था।

तुम्हें भी शायद याद होगा कि कितनी ही बार मैंने तुम्हारे साथ सतरंगी सपने बुने थे, पूरे इंद्रधनुष से रंगीन, लाल, हरे, नीले और ना जाने कौन-कौन से रंगों के। पर अब तुम्हारे बिना सपने भी नहीं आते। तुम्हें शायद ये भी याद हो कि वापसी में जब तुम थककर बैठ जाती थी, तो तुम्हारा मन बहलाने के लिये मैं क्या-क्या नहीं करता था। ढेरों कागज की कश्तियाँ बनाकर कभी तुम्हारे हाथों में, कभी पाँव पर गुद-गुदी किया करता था। पहले तो तुम मेरी गुश्ताखियों को नज़रअंदाज कर देती थी, पर यदि ज्यादा थक जाती तो सारी की सारी कश्तियों को उठा कर एक किनारे फेंक देती थी। तुम्हारी ये नादानियाँ भी मुझे अच्छी लगती थी।

तुम्हें भी तो मेरा साथ अच्छा लगता था, फिर इस साल ऐसा क्या हो गया कि अब तक तुम्हारी कोई खबर नहीं है। कितनी ही बार तुम्हारा फोन आया कि मैं कल आ रही हूँ, परसों आ रही हूँ। और मैं कितने ही दिन इसी तरह इंतज़ार करता रह गया पर तुम नहीं आई। अब तो गरमी की छुट्टियाँ भी खत्म हो गई और बच्चों के स्कूल भी खुल गये, पर तुम अभी तक नहीं आई।

कभी-कभी सोचता हूँ कि मुझसे ऐसी क्या गलती हो गई जिसकी मुझे इतनी बडी सजा मिल रही है। पर मन को शांत करके सोचता हूँ तो लगता है सारी गलती मेरी ही है। मैने ही कुछ सालों से तुम्हारा अच्छे से सत्कार नहीं किया, तुम्हारा ध्यान नहीं रखा। मुझे पता है कि तुम्हें हरियाली बहुत पसंद है, पर ना मैंने तुम्हारे लिये हरे-भरे पेड लगाये और ना ही तुम्हारे आने पर तुम्हारे रहने का अच्छा इंतज़ाम किया। और तो और पिछले कुछ सालों में मैंने शहर में इतना प्रदूषण फैलाया कि अब यह शहर शायद तुम्हारे रहने लायक ही नहीं रहा। पर अब मुझे मेरी गलती का एहसास हो गया है। मैं प्रण लेता हूँ कि आज से ही तुम्हारी पसंद-नापसंद का पूरा ध्यान रखूंगा।

उम्मीद करता हूँ कि मेरा ये पत्र पढ़कर तुम मेरी बेचैनी अच्छी तरह समझ सकोगी। मुझे भरोसा ही नहीं पूरा विश्वास है कि #मेघा अब तुम मुझसे ज्यादा दिन रूठी नहीं रहोगी और जल्दी ही बारीश की फुहार लेकर मेरे तन-मन और घर-आँगन को भीगो दोगी। तुम्हारे आने के इंतज़ार में।

लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 821 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ऐसा कभी क्या किया है किसी ने
ऐसा कभी क्या किया है किसी ने
gurudeenverma198
!! फूल चुनने वाले भी‌ !!
!! फूल चुनने वाले भी‌ !!
Chunnu Lal Gupta
सीख बुद्ध से ज्ञान।
सीख बुद्ध से ज्ञान।
Buddha Prakash
अधर्म का उत्पात
अधर्म का उत्पात
Dr. Harvinder Singh Bakshi
ग़ज़ल
ग़ज़ल
प्रीतम श्रावस्तवी
संविधान की मौलिकता
संविधान की मौलिकता
Shekhar Chandra Mitra
घर और घर की याद
घर और घर की याद
डॉ० रोहित कौशिक
आपकी बुद्धिमत्ता को कभी भी एक बार में नहीं आंका जा सकता क्यो
आपकी बुद्धिमत्ता को कभी भी एक बार में नहीं आंका जा सकता क्यो
Rj Anand Prajapati
चमचे और चिमटे जैसा स्कोप
चमचे और चिमटे जैसा स्कोप
*Author प्रणय प्रभात*
2696.*पूर्णिका*
2696.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सत्याग्रह और उग्रता
सत्याग्रह और उग्रता
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
है जो बात अच्छी, वो सब ने ही मानी
है जो बात अच्छी, वो सब ने ही मानी
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
युद्ध के मायने
युद्ध के मायने
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
আজকের মানুষ
আজকের মানুষ
Ahtesham Ahmad
कुशादा
कुशादा
Mamta Rani
स्त्री एक रूप अनेक हैँ
स्त्री एक रूप अनेक हैँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
नलिनी छंद /भ्रमरावली छंद
नलिनी छंद /भ्रमरावली छंद
Subhash Singhai
देश की हिन्दी
देश की हिन्दी
surenderpal vaidya
तुम्हारी याद है और उम्र भर की शाम बाकी है,
तुम्हारी याद है और उम्र भर की शाम बाकी है,
Ankur Rawat
मौन पर एक नजरिया / MUSAFIR BAITHA
मौन पर एक नजरिया / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
*मृत्यु-चिंतन(हास्य व्यंग्य)*
*मृत्यु-चिंतन(हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
"सृजन"
Dr. Kishan tandon kranti
💐प्रेम कौतुक-544💐
💐प्रेम कौतुक-544💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
गीतिका-
गीतिका-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
गीत-14-15
गीत-14-15
Dr. Sunita Singh
राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
Satyaveer vaishnav
~~🪆 *कोहबर* 🪆~~
~~🪆 *कोहबर* 🪆~~
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
पापा आपकी बहुत याद आती है !
पापा आपकी बहुत याद आती है !
Kuldeep mishra (KD)
हिकारत जिल्लत
हिकारत जिल्लत
DR ARUN KUMAR SHASTRI
पढ़ते है एहसासों को लफ्जो की जुबानी...
पढ़ते है एहसासों को लफ्जो की जुबानी...
पूर्वार्थ
Loading...