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4 Aug 2017 · 2 min read

तुम बड़ा काम करती हो

तुम बड़ा काम करती हो
तब सिर्फ पढ़ने का ही काम था
वैसे सारा दिन आराम था,
स्कूल से घर, घर से स्कूल
शाम को खेलना, रविवार को
जाना बाजार था, मन में मात्र
पुस्तकों का ही अंबार था।
मां! तब भी कहती थी मुझको
तुम बहुत मेहनत करती हो
थोड़ा खा लो, सुस्ता लो
जिद्द कर-करके परेशान करती हो-

आज सबसे पहले उठती हूं,
बच्चों को स्कूल, पतिदेव को आफिस
हर रोज खुश होकर विदा मैं करती हूं
सुबह का नाश्ता, दोपहर के लंच की
कश्मकश से रात-दिन, मैं गुजरती हूं
फिर दौड़-दौड़ कर अपने कार्यालय
की ओर दौड़ की जुगत लगाती हूं,
सुबह नौ से साढ़े पॉंच ऑफिस में
काम की कैद में फस जाती हूं,
आफिस की हाजिरी पंचिग मशीन
पर लगाकर अपनी बैचेन अंगुली का निशान
भाग-भाग कर रिक्शा में चढ़ जाती हूं।
पर बहुत ताज्जुब है मुझे, आज कोई नहीं कहता मुझे
तुम बड़ा काम करती हो, थोड़ा आराम कर लो
कुछ खा लो,
इतनी क्यों जिद्द करती हो–

अभी तो शाम के छ: ही बजे हैं,
असली संघर्ष तो अब शुरु होगा दोस्तों
घर में अभी कितने खलेरे पड़े हैं,
वो बिस्तर पर लेटे हुए मुचड़े हुए कपड़े,
वो नाक चिढ़ाती हुई मुझको, बिखरी हुई किचन
मेरे रास्ते में अचानक ही आते हुए जूते
प्यारे दुलारों की मुझको बुलाती हुई कापिंयां
हैल्प कर दो मम्मी मेरी, बच्चों की किलकारियां
सब्जियां भी मुझे देख कर इतरा रही हैं
हमें भी बना लो अब, ये आवाजें आ रही हैं
सूपरमॉम का मुझको नहीं चाहिए कोई तमगा,
इंसान ही समझ लो बस इतनी ही है इल्तजा,
नहीं चाहिए मुझको कोई इनाम अपने काम का
बस शब्दों की खुराक है, मेरी थकावट के उपचार का
बस कभी तो कोई मुझको भी कह दे
तुम बड़ा काम करती हो, थोड़ा आराम कर लो
कुछ खा लो,
इतनी क्यों जिद्द करती हो

ये नौकरी मेरी कोई शौंक की चीज नहीं अब
मुझपर कई निर्भर हैं, मात्र मेरी आर्थिक-आत्मनिर्भरता की बात
नहीं है अब
तो आस-पास नजदीकी परिवेश में जो साथ-साथ
रहते हैं
जिनकी फिक्रों में मेरे दिलो-दिमाग में युं ख्वाब से
बनते रहते हैं
तुम्हारा थोड़ा तो पूछना बनता है मुझसे चाहे
किसी त्रैमासिक पत्रिका में छपने वाले किसी लेख की ही तरह
तुम बड़ा काम करती हो, थोड़ा आराम कर लो
कुछ खा लो
इतनी क्यों जिद्द करती हो–

मीनाक्षी भसीन सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
458 Views
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