तुम्हें देखे हमको ज़माना हुआ है
ग़ज़ल
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वो दर पे नबी के जो आया हुआ है
ग़मों का उसी के सफाया हुआ है
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किसानों की मेहनतकशी है ये प्यारे
पसीना जो चेहरे पे आया हुआ है—-गिरह
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बड़ी होके बेटी तो होगी पराई
जिसे बाजुओं में झुलाया हुआ है
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सनम मान जाओ या हमको बता दो
सबब क्या है जो मुँह फुलाया हुआ है
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मेरे चाँद अब तो निकल आओ बाहर
तुम्हें देखे हमको ज़माना हुआ है
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मेरी मौत ही आखिरी है दवा जब
के अब दर्दे दिल जो पुराना हुआ है
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नहीं झुकने देंगे तिरंगे को हम जो
लहू बन के रग़ में समाया हुआ है
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नहीं जुल्म हमपे करो और “प्रीतम”
ये दिल पहले से ही सताया हुआ है
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
12/08/2017
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