तिनका- तिनका …..
तिनका तिनका
`
तिनका-तिनका तोड़ के ,रख देता है आज
बस्ती दिखे अकड़ कहीं ,फिजूल कहीं समाज
&
परिभाषा देशहित की ,पूछा करता कौन
बहुत खरा एक बोलता ,दूजा रहता मौन
&
भव-सागर की सोचते ,करने अब की पार
चुका रहे हम लोग के, गिन-गिन कर्ज उधार
&
गया उधर एक मालया ,हथिया के सब माल
किये हिफाजत लोग वे ,नेता, चोर, चंडाल
&
देश कभी तू देख गति ,है इतनी विकराल
यथा शीघ्र सब जीम के ,खाली करो पंडाल
&
मुह क्यों अब है फाड़ता ,कमर तोड़ है दाम
किसको कहते आदमी ,चुसा हुआ है आम
&&
सुशील यादव