” डूबी हूँ , तेरे ख्यालों में ” !!
मुंडेरों से धूप उतरी ,
लहरा गई !
रुख़सार को ठंडी हवा ,
सिहरा गई !
टिकटिकाती घड़ी ठहरी –
उलझे से सवालों में !!
कद घटा दिनों का ,
छोटे हुए !
सिसकती रातें घनेरी ,
सिमटे हुए !
चाँद मद्धम,स्वप्न ठिठुरे –
रोज़ के बवालों में !!
उम्मीदों पर हिमपात ,
जैसे हुआ !
चाहकर यों अनदेखा ,
तुमने किया !
अब रेशमी रिश्ते सहेजूँ –
चाहत के उजालों में !!