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10 Oct 2016 · 1 min read

डर लगता है

डर लगता है इन रातों से, इन रातों से डर लगता है,
कब कौन कहाँ कैसे होगा, इन बातों से डर लगता है।

पलकों के सपनो को अपने अश्कों में बह जाने दो, इन सौंधी सौंधी आँखों के ख़्वाबों से डर लगता है।

वो शख़्स अभी जो गुजरा है, उसके पाँवों में अंगारे थे,
कैसे चलता जाऊ मैं, इन राहों से डर लगता है।

वो यार मुझे तो कहता है, और दिल की बातें छुपा के रखता,
तेरे दिल में दबे दबे उन राज़ो से डर लगता है।

‘दवे’ दीवानों की दुनिया में कैसे नफ़रत ज़िंदा है,
नफ़रत की ज्वाला उगल रही उन आँखों से डर लगता है।

पल पल रूप बदलती दुनिया, लोगो के कितने चेहरे है,
खंजर से और लोग डरे, मुझे मीठी बातों से डर लगता है।

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