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29 Nov 2016 · 1 min read

डबडबाई सी आँखों को ख़्वाब क्या दूं

डबडबाई सी आँखों को ख़्वाब क्या दूं
चेहरा पढ़ने वालों को क़िताब क्या दूं

मुस्कुराहट और ये जलवा-ए-रुखसार
इन गुलाबों के चमन को गुलाब क्या दूं

आशना हो तुम जब हालात से मेरे
तुम ही बतलाओ तुमको जनाब क्या दूं

उठें सवाल तो बैठ के मसला हल करें
अब तन्हाई में सोचकर जवाब क्या दूं

उम्मीद ही रक्खी ना सहारा ही मिला
इस ज़माने को मैं अपना हिसाब क्या दूं

सिमटी हुई है खुद आशियाँ में काँच के
बिखरते दिल को सहारा-ए-शराब क्या दूं

ख़्याल न आया ‘सरु’ को रही जब जवानियाँ
मुरझा गये ज़ज़्बातों को शबाब क्या दूं

1 Comment · 300 Views
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