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12 Oct 2016 · 1 min read

झूठ बहका,सच है महका

झूठ बहका,सच है महका
पाप के अंधकार में,
रोशनी का दीप कहता
था तेरा कभी, जो बोलबाला
छल से लिपटा, फकत एक सहारा
है आज मेरे कदमों में तू
छत विछत होकर है तूने
अपना सबकुछ गवाया
कल भी था, आज भी है चमका
हो आवरण घना मेघ सा
तिमिर को मिटाता
सूरज है निकला
हर वर्ष जलता है रावण
पर जुल्म आज भी सुलगता है
स्त्री शोषण हो या आतंकवाद
इस जहां में आज भी पनपता है
एक होकर आज फिर
एक युद्ध लड़ना है
जुल्म की इस राख को
पवित्र मिट्टी से,
पृथक करना है

-सोनिका मिश्रा

Language: Hindi
1 Like · 536 Views
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