Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 May 2017 · 2 min read

जूते भी सिलता है बचपन

ठण्डी पटकन पर ठहरा बचपन
शहर चौराहे बैठा बचपन

पूछे ,, जूते चमका दू क्या भईया ?

क्या जूते भी सिलता है बचपन ?

तनिक रूक कर मन सुस्त हुआ
पूछा फिर मैने
क्या नाम है बाबू ?
बेबाकी से बचपन बोला
‘ भूरा ‘ नाम है हमरा भईया

और
ऊपर की जेब मे रखी थी उसने
पालिश की एक पिचकी सी डिब्बी
मन चमकता उजला सा है
और
हाथो पर अनगिनत जूतो की जिभ्भी

पुष्प सरीखे नन्हे हाथो पर ,, नृशंस जीवन के शूल चूभे है
कई गहरे चोट बचपन के देह पर
निर्मम जीवन के भूल छिपे है

पास ही बैठी थी बचपन की अबोध सहोदरा
खेल रही थी
और खिलौने थे उसके ,, वो ही कुछ पालिश की डिब्बी

मै भी बैठा कि खेल कर देखू
बैठते ही बचपन ने टोका

तुम्हारे कपड़े गंदे होते है भईया

मेरा भी संवाद बचपन से
तुम्हारे कपड़े क्यो कभी गंदे नही होते ?

बचपन का वो सयाना प्रशनोत्तर

मेरे फटे लबादे से सुंदर झिंगोले की तुलना क्यो करते हो
पालिश तो दस रूपये की मैने की है
पचास रूपये तुम क्यो देते हो

क्या बोलू बचपन से
क्षण भर को तो मै मौन हुआ

स्वाभिमान की नन्ही झांकी
झलक दिखी तो मैने बोला

महँगे जूतो पर मेहनत की पालिश
सो पचास रूपये देता हू

नन्ही अनुजा
खिलौने मुझसे बांट रही थी
अबोध बोली से जाने क्या गांठ रही थी

दो पन्नो पर
अनुजा हाथो की छापे लेकर
मैने पूछा
रख लू क्या मै ये छापे

छाप नही है ये
ये रूपया है

हंसते हंसते बोला बचपन
रख लो भईया
ये छोटकी नही है
ये भी फूटी चूकिया है

ओझल हो कर उन बचपन नयनो से
निहारता रहा मै
बचपन का कर्मोत्सव

क्या ज्ञान बघारू बचपन को
समझाऊ क्या ??
काॅपी कलम की बात
रोटी की भयावह ज्वाला से
कब जलती है शिक्षित लौ की आग

क्षण भर की विपत्ति भोग कर
जो लिखते पढते अवसाद ही है
उनको इस बचपन के जीवठ से मिलकर

मिलना जैसे अमृत होगा

और वही प्रशन सूनता हू फिर मै
जूते चमका दू क्या भईया

और वही
शहर चौराहे बैठा बचपन
ठण्डी पटकन पर ठहरा बचपन

क्या जूते भी सिलता है बचपन ??

सदानन्द
18 मई 2017

Language: Hindi
661 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"बेज़ारी" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
#दोहा (आस्था)
#दोहा (आस्था)
*Author प्रणय प्रभात*
न मिलती कुछ तवज्जो है, न होता मान सीधे का।
न मिलती कुछ तवज्जो है, न होता मान सीधे का।
डॉ.सीमा अग्रवाल
तसल्ली मुझे जीने की,
तसल्ली मुझे जीने की,
Vishal babu (vishu)
"चाहत का सफर"
Dr. Kishan tandon kranti
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
कुछ देर तुम ऐसे ही रहो
कुछ देर तुम ऐसे ही रहो
gurudeenverma198
मा भारती को नमन
मा भारती को नमन
Bodhisatva kastooriya
माधव मालती (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
माधव मालती (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
Subhash Singhai
*मोर पंख* ( 12 of 25 )
*मोर पंख* ( 12 of 25 )
Kshma Urmila
*दही (कुंडलिया)*
*दही (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
गुलाब के अलग हो जाने पर
गुलाब के अलग हो जाने पर
ruby kumari
कितनी ही गहरी वेदना क्यूं न हो
कितनी ही गहरी वेदना क्यूं न हो
Pramila sultan
आपको याद भी
आपको याद भी
Dr fauzia Naseem shad
पारख पूर्ण प्रणेता
पारख पूर्ण प्रणेता
प्रेमदास वसु सुरेखा
घर पर घर
घर पर घर
Surinder blackpen
दुनिया दिखावे पर मरती है , हम सादगी पर मरते हैं
दुनिया दिखावे पर मरती है , हम सादगी पर मरते हैं
कवि दीपक बवेजा
प्रेम पर्व आया सखी
प्रेम पर्व आया सखी
लक्ष्मी सिंह
"हाय री कलयुग"
Dr Meenu Poonia
खूबसूरत पड़ोसन का कंफ्यूजन
खूबसूरत पड़ोसन का कंफ्यूजन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
फितरत कभी नहीं बदलती
फितरत कभी नहीं बदलती
Madhavi Srivastava
दाढ़ी-मूँछ धारी विशिष्ट देवता हैं विश्वकर्मा और ब्रह्मा
दाढ़ी-मूँछ धारी विशिष्ट देवता हैं विश्वकर्मा और ब्रह्मा
Dr MusafiR BaithA
मैं तेरा श्याम बन जाऊं
मैं तेरा श्याम बन जाऊं
Devesh Bharadwaj
उसे देख खिल गयीं थीं कलियांँ
उसे देख खिल गयीं थीं कलियांँ
डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
प्यासा के हुनर
प्यासा के हुनर
Vijay kumar Pandey
मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
Er.Navaneet R Shandily
जहाँ बचा हुआ है अपना इतिहास।
जहाँ बचा हुआ है अपना इतिहास।
Buddha Prakash
गुलाल का रंग, गुब्बारों की मार,
गुलाल का रंग, गुब्बारों की मार,
Ranjeet kumar patre
23/130.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/130.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चुन लेना राह से काँटे
चुन लेना राह से काँटे
Kavita Chouhan
Loading...