जिस आँगन नहीं होती बेटी
जिस आँगन नहीं होती बेटी
वहाँ कितना सूना होता है !
कोई पर्व सुहाना नहीं होता है
न उत्सव मस्ताना होता है ।।
दीवाली पर बिटिया ही
दीप सजाया करती है ,
होली पर भी बिटिया ही
घर में रंग भरती है ।।
चैत्र और शरद दोनों में
बेटी से उत्सव होता है ,
सावन और कार्तिक में उससे
भैया का मस्तक सजता है ।।
बेटी घर को घर बनाती
दीवारों को भी जीवन देती है,
दुआओं से भरती घर भैया का
बदले में कभी कुछ न लेती है ।।
जिस घर में बेटी नहीं होती
वहाँ दुआएँ कौन करता होगा ?
निःस्वार्थ भाव से मात पिता को
कौन भला चाहता होगा ?
भाई के लिए तो बहना ही
दुआओं का खजाना होती है ,
उसके बिना तो दुआओं की
तिजोरी खाली होती है ।।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली- 47