जामे-मयखाना ओ बोतल को पड़ा रहने दो
ग़ज़ल
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नाम इस दिल पे तुम्हारा ही लिखा रहने दो
प्यार का दीप जला है तो जला रहने दो
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और जीने की दुआ मेरे लिए मत करना
दे जहर हमको मगर अब ये दवा रहने दो
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कर के दीदार तेरा मिलता सुकूँ है दिलबर
चाँद चेहरे को जरा यूँ ही खुला रहने दो
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हो गया हमसे गुनह दिल जो लगाया तुमसे
अब न होगी ये सनम हमसे ख़ता रहने दो
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रोज़ दहशत में ही जीते हैं मगर बस भी करो
मुल्क़ में चैन की अब आबो-हवा रहने दो
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आज कुछ ऐसे पिला मुझको नज़र से साक़ी
जामे- मयख़ाना व बोतल को पड़ा रहने दो
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मैं तो मयक़श हूँ मेरा घर तो है ये मयख़ाना
मेरी जन्नत भी यही मुझको फिदा रहने दो
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जिन्दगी नेकियों की एक ही दिन की ज़्यादा
अब तो “प्रीतम” को बुराई से जुदा रहने दो
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
13/09/2017
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2122 1122 1122 22 /112
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