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4 Apr 2017 · 1 min read

जान के दुश्मन

जान के दुश्मन मन में रहकर पलते हैं
मेरे दीये तेरी यादों से जलते हैं

दोस्त जिन्हें इल्म मैं तेरा आशिक हूं
तेरे नाम की देके दुहाई छलते है

अपने सपनों की दुनिया में मस्त रहो
ज्यों चंदा के संग संग तारे चलते हैं

इश्क इबादत समझ के तुमको चाहा है
उनमें से हम नहीं हाथ जो मलते हैं

सच तो यह है जब से तुम को पाया है
बड़ी शान से घर से विजय निकलते हैं

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