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23 Dec 2016 · 1 min read

ज़िंदगी यूं भी मिलेगी

ज़िंदगी यूं भी मिलेगी
ये कभी सोचा न था

लम्हा लम्हा बिंध गया
कतरा कतरा बिखर गया
कशमकश में वक्त भी
सहम सहम ठहर गया

सिलवटों में अश्क अब
सिमट गये तहों में सब
बेबसी भी बंदिगी में
नज़र का ये हुआ सबब

कहर है दबा कहीं
रात स्याह है वहीं
वक्त के आगोश में
मौन आहटे रहीं

उलझने उलझ गईं
मेरी ज़मीं सुलग गई
मोह पाश खुल गये
रौंद कर मुझे गये

जीवन चल रहा अभी
साथ में इक राह भी
हमकदम मेरे कदम
दूर आसमां अभी।

Language: Hindi
1 Like · 248 Views
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