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8 Dec 2016 · 1 min read

ज़िंदगी अपनी है फिर भी उधार लगती है..

ज़िंदगी अपनी है फिर भी उधार लगती है
कुछ और नहीं ये दुनियां बाज़ार लगती है

तेज़ धूप और बारिश ने ये हाल कर दिया
मुझे अपने दिल की दर-ओ-दीवार लगती है

सोना- जागना खाना- पीना हँसना – रोना
रोज़ -रोज़ की ये कहानी बेकार लगती है

उल्फ़त के मौसम में गर्म हवा हो या खिजां
गर तेरी तरफ से आये बहार लगती है

अंजान बनी रहे तुमसे और आशना रहे
बेखुद नहीं ये दुनियां बड़ी होशियार लगती है

है तेज़ रफ़्तारी ने इस क़दर जकड़ा हुआ
देखिए बेक़रारी भी बेक़रार लगती है

ख़ुश्बू तिरे चमन की न खबर ही तेरी ‘सरू’
तूफ़ान में हवा ये ग़िरफ्तार लगती है

1 Comment · 221 Views
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