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7 Nov 2016 · 1 min read

ज़ख़्म आहिस्ता दुखाकर चल दिये

ज़ख़्म आहिस्ता दुखाकर चल दिये
आप जो ये मुस्कुराकर चल दिये
—————————————–
ग़ज़ल,
क़ाफ़िया-आकर, रदीफ़-चल दिये
वज़्न- 2122 2122 212
(फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन)
—————————————–
ज़ख़्म आहिस्ता दुखाकर चल दिये
आप जो ये मुस्कुराकर चल दिये
—————————————–
लीडरान-ए-क़ौम ने आवाज़ दी
और हम परचम उठाकर चल दिये
—————————————–
आपसे उम्मीदबर थी शाइरी
आप आये गीत गाकर चल दिये
—————————————–
हम समझते थे जिन्हें अपना वही
आग़ बस्ती में लगाकर चल दिये
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अश्क उतरेंगे बगावत पर अभी
आप तो समझा बुझाकर चल दिये
—————————————–
सरहदों में बँट गये हैं हमवतन
लोग तो दीवार उठाकर चल दिये
—————————————–
नींद आँखों से हुई नाराज़ क्या
ख़्वाब सारे तिलमिलाकर चल दिये
—————————————–
कर न दें बदनाम गुलशन को कहीं
फूल ख़ारों से निभाकर चल दिये
—————————————–
राकेश दुबे “गुलशन”
07/11/2016
बरेली

2 Comments · 289 Views
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