Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 May 2017 · 1 min read

जगे युवा-उर तब ही बदले दुश्चिंतनमयरूप ह्रास का

तरुण जाग जाए, तब विकसित राष्ट्र,भाल छूता विकास का।
अगर सो गया, भ्रम ,हिंसा औ अवनतिमय दुश्चक्र नाश का।
जस मानव,वैसा स्वदेश है,सत्य बात सुनिए सुविज्ञ जन।
जगे जवानी तब ही बदले दुश्चिंतनमयरूप ह्रास का।
……………………………………………………….

बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रोंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता

जागा हिंदुस्तान चाहिए कृति का मुक्तक

पेज- 19से

05-05-2017

Language: Hindi
467 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Pt. Brajesh Kumar Nayak
View all
You may also like:
*असर*
*असर*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Canine Friends
Canine Friends
Dhriti Mishra
मैं खुश हूँ! गौरवान्वित हूँ कि मुझे सच्चाई,अच्छाई और प्रकृति
मैं खुश हूँ! गौरवान्वित हूँ कि मुझे सच्चाई,अच्छाई और प्रकृति
विमला महरिया मौज
मोदी जी
मोदी जी
Shivkumar Bilagrami
2669.*पूर्णिका*
2669.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
डाल-डाल पर फल निकलेगा
डाल-डाल पर फल निकलेगा
Anil Mishra Prahari
You have climbed too hard to go back to the heights. Never g
You have climbed too hard to go back to the heights. Never g
Manisha Manjari
अड़बड़ मिठाथे
अड़बड़ मिठाथे
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
वर्तमान, अतीत, भविष्य...!!!!
वर्तमान, अतीत, भविष्य...!!!!
Jyoti Khari
जीवन का रंगमंच
जीवन का रंगमंच
Harish Chandra Pande
खामोश
खामोश
Kanchan Khanna
श्रम साधिका
श्रम साधिका
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
औरत का जीवन
औरत का जीवन
Dheerja Sharma
दोस्ती में हर ग़म को भूल जाते हैं।
दोस्ती में हर ग़म को भूल जाते हैं।
Phool gufran
लहजा बदल गया
लहजा बदल गया
Dalveer Singh
क्यों करते हो गुरुर अपने इस चार दिन के ठाठ पर
क्यों करते हो गुरुर अपने इस चार दिन के ठाठ पर
Sandeep Kumar
समंदर
समंदर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सीढ़ियों को दूर से देखने की बजाय नजदीक आकर सीढ़ी पर चढ़ने का
सीढ़ियों को दूर से देखने की बजाय नजदीक आकर सीढ़ी पर चढ़ने का
Paras Nath Jha
क्या यह महज संयोग था या कुछ और.... (2)
क्या यह महज संयोग था या कुछ और.... (2)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मुसाफिर हो तुम भी
मुसाफिर हो तुम भी
Satish Srijan
*ससुराल का स्वर्ण-युग (हास्य-व्यंग्य)*
*ससुराल का स्वर्ण-युग (हास्य-व्यंग्य)*
Ravi Prakash
जोशीला
जोशीला
RAKESH RAKESH
जिंदगी में हजारों लोग आवाज
जिंदगी में हजारों लोग आवाज
Shubham Pandey (S P)
जो किसी से
जो किसी से
Dr fauzia Naseem shad
■ ग़ज़ल / रिसालों की जगह...
■ ग़ज़ल / रिसालों की जगह...
*Author प्रणय प्रभात*
ऐ वसुत्व अर्ज किया है....
ऐ वसुत्व अर्ज किया है....
प्रेमदास वसु सुरेखा
"बेज़ारी" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
सम्भल कर चलना जिंदगी के सफर में....
सम्भल कर चलना जिंदगी के सफर में....
shabina. Naaz
थे कितने ख़ास मेरे,
थे कितने ख़ास मेरे,
Ashwini Jha
*ये उन दिनो की बात है*
*ये उन दिनो की बात है*
Shashi kala vyas
Loading...