Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Nov 2016 · 10 min read

चिड़िया फुर्र…

अभी दो चार दिनों से देवम के घर के बरामदे में चिड़ियों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही हो गई थी। चिड़ियाँ तिनके ले कर आती, उन्हें ऊपर रखतीं और फिर चली जातीं दुबारा, तिनके लेने के लिये।
लगातार ऐसा ही होता, कुछ तिनके नीचे गिर जाते तो फर्श गंदा हो जाता। पर इससे चिड़ियों को क्या? उनका तो निर्माण का कार्य चल रहा है, नीड़ निर्माण का कार्य। उन्हें गन्दगी से क्या लेना-देना।
नये मेहमान जो आने वाले हैं। और नये मेहमान को रहने के लिये घर भी तो चाहिये न? आखिर एक छत तो उनको भी चाहिये, रहने के लिये। पक्षी हैं तो क्या हुआ? उड़ना बात अलग है, चाहे कितना भी ऊँचा उड़ लिया जाय, पर रहने के लिये, आधार तो सबको ही चाहिये।
और फिर इनकी दुनियाँ में तो सब कुछ सेल्फ-सर्विस ही होता है। सब कुछ खुद ही तो करना होता है इन्हें। कोई नौकर नहीं, कोई मालिक नहीं। सब अपने मन के राजा और सब अपने मन के गुलाम।
देवम जब भी बरामदे में आता तो उसे कचरा पड़ा दिखाई देता। ऐसा कई बार हुआ। पर जब उसने ऊपर की ओर देखा तो उसे ख्याल आ गया कि ये तिनके तो चिड़ियाँ बार-बार ला कर ऊपर रख रहीं हैं और वे ही तिनके नीचे गिर जाते हैं। और घर गंदा हो जाता है।
गन्दगी तो देवम को बिल्कुल भी रास नहीं आती। कभी काम वाली से तो कभी खुद, साफ-सफाई करते-करवाते देवम हैरान परेशान हो गया।
उसने मम्मी से शिकायत के लहज़े में कहा-“मम्मी, ये चिड़ियाँ तो घर को कितना गंदा करतीं हैं, देखो ना?”
मम्मी को समझने में देर न लगी। उन्होंने देवम को समझाते हुए कहा-“बेटा, ये अपना घर बना रहीं हैं और जब घर बनता है तो थोड़ी बहुत गंदगी तो हो ही जाती है। ला मैं साफ कर देती हूँ। कुछ दिनों के बाद देखना छोटे-छोटे बच्चे जब चीं-चीं करके उड़ेंगे तो बड़े प्यारे लगेंगे।”
“ऐसा माँ?” देवम ने आश्चर्यचकित हो कर पूछा।
“हाँ बेटा, छोटे-छोटे मेहमान आयेंगे अपने घर में।” मम्मी ने बड़े प्यार से देवम को समझाया।
देवम के मन में आतुरता जागी, छोटी-छोटी चिड़ियाँ के पास कहाँ से, कैसे आ जाते हैं छोटे-छोटे प्यारे बच्चे? अब तो उसके मन में बस प्रतीक्षा थी कि कब वह प्यारे-प्यारे बच्चों को देख सकेगा?
अब तो उसे उनके प्रति सहानुभूति हो गई थी । नीचे पड़े हुए तिनकों को पहले तो वह कचरा मान कर बाहर फैंक दिया करता था। पर अब तो सब के सब तिनके उठा कर, जब चिड़िया बाहर गई होती, तो चुपके से टेबल के ऊपर चढ़कर घोंसले के पास रख देता। और इस तरह रखता कि चिड़िया को पता न लगे। गुप्तदान की तरह गुप्त सहयोग।
सहयोग और सहानुभूति की प्रबल इच्छा होती है बालकों में। बस यह सोच कर कि जितनी जल्दी घर बन जायेगा, उतनी ही जल्दी बच्चे भी आ जायेंगे। और कभी-कभी तो वह बाहर से गार्डन में पड़े तिनकों को खुद ही उठा कर ले आता और टेबल पर चढ़ कर घौंसले के पास रख देता।
और जब उन तिनकों को चिड़ियाँ नहीं लेतीं, तो कभी तो बोल कर, तो कभी इशारे से वह कहता-“ये तिनके भी ले लो न। ये भी तुम्हारे लिये ही हैं।” पर दोनों एक दूसरे की भाषा समझें, तब न।
देवम रोज सुबह घोंसले की ओर देखता, और फिर निराश मन से मम्मी से पूछता-“मम्मी, कितने दिन और लगेंगे बच्चों के आने में?”
एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर किसी के पास न था और वैसे भी बच्चों के प्रश्नों का उत्तर देना इतना आसान भी तो नहीं होता। हर कोई बीरबल तो होता नहीं है।
देवम को समझाते हुए मम्मी ने कहा-“ बेटा, ये सब तो भगवान की मर्जी है, जब वे चाहेंगे तब तुरन्त भेज देंगे।”
“पर, कब होगी भगवान की मर्जी? इतने दिन तो हो गये हैं।” देवम ने उलाहना देते हुए कहा। जैसे कि वो भगवान की शिकायत कर रहा हो। बच्चों के लिये तो माँ, किसी भगवान से कम नहीं होतीं।
शायद देवम की बात भगवान को सुनने में देर न लगी और दूसरे दिन सुबह-सुबह ही घोंसले से चीं-चीं की आवाज सुनाई दी। घोंसले के अन्दर वातावरण गर्मा गया था। चहल-पहल बढ़ गई थी। शायद देवम की प्रार्थना भगवान ने सुन ली थी। उसकी इच्छा पूरी हो गई थी और चिड़िया ने बच्चों को जन्म दे दिया था।
देवम को जब पता चला तो खुशी के मारे फूला नहीं समाया। दौड़ा-दौड़ा वह मम्मी के पास पहुँचा और खुशी का समाचार सुनाया।
वह बोला-“ मम्मी, घोंसले से चीं-चीं की आवाज आ रही है, सुनो न।”
मम्मी ने देवम को समझाया-“एक दो दिन बाद जब बच्चे बाहर निकलेंगे तब दिखाई देंगे। तब तक तो इन्तजार करना ही होगा।”
“मम्मी, मैं अभी ऊपर चढ़ कर देख लूँ तो?” देवम ने उत्सुकता वश पूछा।
“न बेटा, चिड़िया नाराज़ हो जायेगी और घर छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चली जायेगी।” मम्मी ने देवम को समझाते हुए कहा।
“तो फिर क्या करूँ? मम्मी।” देवम का प्रश्न था।
“बस एक दो दिन में बच्चे खुद ही बाहर आ जायेंगे।” मम्मी ने बाल-मन को समझाते हुए कहा।
“ठीक है, मम्मी। जब बाहर आयेंगे तभी देख लूँगा।” देवम ने अपने मन को समझाते हुये कहा।
एक-एक पल का इन्तज़ार जिसके लिए बेहद मुश्किल हो, दो दिन कैसे बिताये होंगे, ये तो देवम ही जाने। पर आज चिड़िया के बच्चों ने घोंसले से बाहर अपना मुँह निकाला और वो भी तब जब कि चिड़िया दाना लेने बाहर गई हुई थी।
शायद अधिक देर हो जाने के कारण, बेटों को माँ की चिन्ता हुई होगी या फिर भूख अधिक लगने के कारण उनकी व्याकुलता बढ़ गई हो?
खैर, कारण जो भी हो, पर देवम की शिशु-दर्शन की तमन्ना आज पूर्ण हो गई। छोटे-छोटे बच्चों को आज उसने जी भर कर देखा। और इसी अन्तराल में चिड़िया भी वहाँ आ पहुँची।
बच्चों का चीं-चीं करके मुँह खोलना और चिड़िया का मुँह में दाना डालना। दिव्य-दृश्य देवम ने निहारा। गद्-गद् हो गया उसका आतुर मन।
छोटे-छोटे बच्चे कभी घोंसले से बाहर की ओर मुँह निकाल कर अपनी माँ का इन्तजार करते और कभी जब माँ दिखाई दे जाती तो चीं-चीं कर के उसे बुलाते। देवम यह सब कुछ देख कर बड़ा खुश होता।
कभी तो थाली में ज्वार का दाना रख कर दूर हट जाता और दूर खड़े हो कर चिड़िया का इन्तजार करता। उसे तो उस क्षण का इन्तजार रहता जब चिड़िया दाना ले कर अपने छोटे-छोटे बच्चों के मुँह में दाना डाले।
इस क्षण की अनुभूति ही देवम को बड़ी अच्छी लगती। और इसी क्षण की प्रतीक्षा में वह घण्टों घोंसले से दूर इन्तजार करता।
छोटे बच्चों का घोंसले के बाहर निकलना, पंखों को फड़फड़ाना और उड़ने का प्रयास करना, अब तो आम बात हो गई थी। पर देवम की आत्मीयता में कोई भी कमी नही आई थी। वह उनका पूरा ख्याल रखता।
कभी-कभी तो वह छोटी थाली में दाना डाल कर, टेबल पर चढ़ कर थाली को ही घोंसले के पास रख देता। और दूर खड़ा हो गतिविधियों का निरीक्षण करता।
एक दिन देवम ने देखा कि एक बिल्ली टेबल पर रखे सामान के ऊपर चढ़ कर घोंसले तक पहुँचने का प्रयास कर रही है। उसे समझते देर न लगी कि बिल्ली तो बच्चों को नुकसान पहुँचा सकती है। उसने बिल्ली को तुरन्त भगाया और मम्मी को बताया।
मम्मी ने पायल की मदद से टेबल पर रखे सामान को वहाँ से हटा कर टेबल को भी उस जगह से हटा कर दूसरी जगह रख दिया। और साथ ही ऐसी व्यवस्था कर दी कि घोंसले के पास तक बिल्ली न पहुँच सके।
अब उसे ख्याल आ गया कि बिल्ली कभी भी चिड़िया के बच्चों को नुकसान पहुँचा सकती है और उनकी रक्षा करना उसका पहला कर्तव्य है। उसने निश्चय किया कि वह अपना अधिक से अधिक समय बरामदे में ही बिताएगा।
अपने पढ़ने की टेबल-कुर्सी भी उसने बरामदे में ही रख ली। और तो और डौगी को भी पिलर से बाँध दिया ताकि बिल्ली घोंसले के आसपास भी न फटक सके। अब तो उसकी पढ़ाई भी बरामदे में ही होती।
शायद राजा दिलीप ने इतनी सेवा नन्दिनी की नहीं की होगी, जितनी सेवा देवम ने चिड़िया और उनके बच्चों की, की। राजा दिलीप का तो स्वार्थ था। पर देवम का क्या स्वार्थ, उसे तो बस सेवा करने में अच्छा लगता है। बच्चों का प्रेम तो निश्छल होता हैं, उनका प्रेम तो निःस्वार्थ भावना से भरा होता है। छल और कपट से परे, भगवान का वास होता है उनके पावन मन-मन्दिर में।
और इस तरह एक सप्ताह ही बीता होगा कि एक दिन देवम ने देखा कि घोंसले में न तो चिड़िया थी और ना ही बच्चे। चिड़िया-फुर्र और घोंसला खाली।
एक दिन और इन्तजार किया, शायद रास्ता भूल गये हों। पर वे नहीं आये तो नहीं ही आये। चिड़िया और बच्चे उड़ कर जा चुके थे।
बाल-मन उदास हो गया। प्रेम की डोर ही कुछ ऐसी ही होती है। जब टूटती है तो दुख तो होता ही है।
उसने मम्मी से बड़े ही उदास मन से कहा,“मम्मी, चिड़िया तो बच्चों के साथ कहीं उड़ गई। अब घोंसला तो खाली पड़ा है।”
“अच्छा! चिड़िया फुर्र हो गई? चलो, अच्छा हुआ और दूसरी आ जायेगी।” मम्मी ने जानबूझ कर वातावरण को हल्का करते हुए कहा।
“नहीं मम्मी, मुझे चिड़िया के बच्चे अच्छे लगते थे।” देवम ने दुखी मन से कहा।
“पर उनको जहाँ अच्छा लगेगा, वहीं तो वे रहेंगे।” मम्मी ने देवम को समझाया।
“मैं तो उनका कितना ध्यान रखता था फिर भी चले गये।” देवम ने शिकायत भरे लहज़े में कहा और कहते-कहते आँसू छलक पड़े।
कैसे समझाये मम्मी, जिन्दगी के इस गूढ रहस्य को। बच्चे प्यारे होते हैं, वे निश्छल और निःस्वार्थ प्रेम करते हैं। और प्रेम ही तो मोह का मूल कारण होता है। बन्धन में बाँध लेता है भोले मन को।
जो आया है उसे एक न एक दिन तो जाना ही होता है। बालक को समझाना कितना मुश्किल होता है, ये तो देवम की मम्मी ही जाने। माँ से ज्यादा अच्छा और कौन समझा सकता है? और समझ सकता है अपने बालक को?
पर यह सत्य है एक न एक दिन तो हम सबको ही फुर्र हो कर कहीं उड़ जाना है और घोंसले को तो यहीं का यहीं रह जाना है। फिर मोह कैसा? पर फिर भी, मोह तो होता ही है। आँखें तो भर ही आती हैं।
मम्मी ने देवम को समझाते हुए कहा-“बेटा, जब तेरे पापा छोटे थे तो पापा की मम्मी, पापा को दूध पिलाती थी, खाना खिलाती थी और गाँव में रहते थे।”
“ऐं मम्मी!” देवम को आश्चर्य भी हुआ और हँसी भी आई।
“हाँ और सुन, फिर पापा बड़े हो गये, उनकी नौकरी यहाँ शहर में लगी, तो फुर्र होकर गाँव से शहर आ गये।” ऐसा कहते हुए मम्मी ने एलबम में से अपनी बचपन की एक फोटो दिखाई।
“ये तो मम्मी फ्रॉक पहने हुए कोई छोटी सी लड़की बैठी है।” देवम ने फोटो देख कर कहा।
“पहचान, ठीक से पहचान, ये तो मैं हूँ।” मम्मी ने देवम की जिज्ञासा बढ़ाई।
“पहले ऐसी थीं मम्मी आप?” देख कर देवम को हँसी आ गई।
“हाँ, पहले ऐसी थी मैं, फिर बड़ी हो गई, शादी हुई और फिर फुर्र होकर मैं तेरे पापा के पास आ गई।” मम्मी ने देवम को समझाया।
पहले तो देवम हँसा फिर बोला-“फिर तो मम्मी, मैं भी बड़ा हो कर पापा जैसा हो जाऊँगा?”
“हाँ बेटा, अभी तू पढ़ेगा, फिर जहाँ तेरी नौकरी लगेगी वहीं तू भी फुर्र होकर चला जायेगा। तेरी भी सुन्दर- सी बहू फुर्र हो कर तेरे पास आ जायेगी।” मम्मी ने देवम को गुदगुदाया।
“अच्छा मम्मी, मैं अभी फुर्र होकर दूसरे कमरे में होकर आता हूँ और आप मेरे लिये किचिन में से फुर्र होकर ठंडा-ठंडा पानी ले आओ। मुझे बड़ी जोर से प्यास लगी है।” देवम ने कहा।
और जब एक प्यास बुझ जाती है तो दूसरी प्यास लगा ही करती है, ऐसा प्रकृति का नियम ही है। शायद देवम की समझ में भी कुछ आ गया होगा।
वह समझ गया था कि भगवान ने पक्षियों को उड़ने के लिये पंख दिये हैं तो वे उड़ेंगे ही। स्वच्छंद असीम आकाश में। पक्षी तो आकाश की शोभा हैं न कि बन्द पिंजरों की।
उधर देवम के पापा ने यह सोच कर कि देवम का मन लगा रहेगा और चिड़िया के बच्चों से मन हट जायेगा, बाजार से दो तोते पिंजरों के साथ मँगवा दिये। और जहाँ घोंसला था उसी के नीचे दोनों पिंजरे टँगवा दिये। खाना और पानी की भी पूरी व्यवस्था भी करवा दी।
देवम ने तोतों को देखा तो आश्चर्य हुआ। पर उसे अच्छा नहीं लगा।
उसने पापा से कहा-“पापा, इन तोतों को उड़ा दें तो कितना अच्छा रहेगा? आकाश में उड़ते हुये ये कितने सुन्दर लगेंगे?”
“हाँ, पर तुम जैसा उचित समझो?” पापा ने कहा। चाहते तो पापा भी यही थे। पर कभी-कभी सन्तान की खुशी के लिये माता-पिता को वह काम भी करना पड़ता है जिसे वे नहीं चाहते हैं। पर उनका प्रयास बच्चों को सही दिशा दिखाने का अवश्य ही रहता है।
देवम ने दोनों तोतों को खट्टी अमियाँ खिलाईं, पानी पिलाया और फिर पिंजरे के दरवाजे को खोल कर हँसते हुये कहा,“तोते फुर्र….. तोते फुर्र…… तोते फुर्र…..।”
और देखते ही देखते दोनों तोते पंख फड़फड़ाते हुए असीम आकाश में ओझल हो गए और शायद देवम का मन भी असीम आकाश सा विशाल हो गया था।
और मम्मी खड़ी-खड़ी देवम की प्रसन्नता को निहार रहीं थीं।
फिर मम्मी को देख कर, हँसते हुये देवम ने मम्मी से कहा,“मम्मी, चिड़िया फुर्र… तोते फुर्र… फुर्र… फुर्र…”
देवम ने दोनों पिंजरों को बड़ी बेरहमी से तोड़ डाला ताकि कोई दूसरा तोता इन पिंजरों में, कोई बन्द न कर सके।
और घोंसले को वहीं रखा रहने दिया ताकि कोई दूसरी चिड़िया इसमें आ कर रह सके।
पर भोले देवम को क्या मालूम कि इनके समाज में, ये लोग तो अपना घर खुद ही बनाते हैं। ये लोग किसी दूसरे के घर में नहीं रहते हैं। और तो और इनके यहाँ तो सब कुछ सैल्फ-सर्विस ही होता है।
देवम क्या जाने कि जब ये प्राण-पखेरू उड़ जाते हैं तो ये नश्वर शरीर किसी काम का नहीं रहता और ना ही इस नश्वर घोंसले में कोई प्राण, पुनः प्रवेश करता है। प्राण को परमात्मा से मिलने के लिए घोंसले से तो बाहर निकलना ही पड़ता है। ये चिड़िया फुर्र होकर ही तो अनन्त आकाश में विलीन हो जाती है। एक जगह विरह होता है तो दूसरी जगह मिलन भी तो होता है।
इस जरा सी बात को देवम क्या, हम भी नहीं समझ पाते हैं और चिड़िया के फुर्र होने पर वरबस आँखों से सागर छलक जाते हैं। गंगा-जमना बह जातीं हैं। मन उदास हो जाता है।
यही तो संसार का नियम है।
*****
…आनन्द विश्वास
(यह कहानी मेरे बाल-उपन्यास देवम बाल-उपन्यास से ली गई है।)

Language: Hindi
529 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वीरगति सैनिक
वीरगति सैनिक
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
बिन फले तो
बिन फले तो
surenderpal vaidya
हौसला अगर बुलंद हो
हौसला अगर बुलंद हो
Paras Nath Jha
मेरे दिल से उसकी हर गलती माफ़ हो जाती है,
मेरे दिल से उसकी हर गलती माफ़ हो जाती है,
Vishal babu (vishu)
आदिकवि सरहपा।
आदिकवि सरहपा।
Acharya Rama Nand Mandal
हम लड़के हैं जनाब...
हम लड़के हैं जनाब...
पूर्वार्थ
बड़ी मुश्किल से लगा दिल
बड़ी मुश्किल से लगा दिल
कवि दीपक बवेजा
******छोटी चिड़ियाँ*******
******छोटी चिड़ियाँ*******
Dr. Vaishali Verma
हिंदी
हिंदी
नन्दलाल सुथार "राही"
माँ शारदे-लीला
माँ शारदे-लीला
Kanchan Khanna
आवश्यकता पड़ने पर आपका सहयोग और समर्थन लेकर,आपकी ही बुराई कर
आवश्यकता पड़ने पर आपका सहयोग और समर्थन लेकर,आपकी ही बुराई कर
विमला महरिया मौज
*
*"हलषष्ठी मैया'*
Shashi kala vyas
******** रुख्सार से यूँ न खेला करे ***********
******** रुख्सार से यूँ न खेला करे ***********
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
प्रश्रयस्थल
प्रश्रयस्थल
Bodhisatva kastooriya
Happy new year 2024
Happy new year 2024
Ranjeet kumar patre
💐प्रेम कौतुक-420💐
💐प्रेम कौतुक-420💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
विकृत संस्कार पनपती बीज
विकृत संस्कार पनपती बीज
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
एक ख्वाब सजाया था मैंने तुमको सोचकर
एक ख्वाब सजाया था मैंने तुमको सोचकर
डॉ. दीपक मेवाती
ख़ामोश निगाहें
ख़ामोश निगाहें
Surinder blackpen
दिलाओ याद मत अब मुझको, गुजरा मेरा अतीत तुम
दिलाओ याद मत अब मुझको, गुजरा मेरा अतीत तुम
gurudeenverma198
नव्य द्वीप का रहने वाला
नव्य द्वीप का रहने वाला
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
अभिमान  करे काया का , काया काँच समान।
अभिमान करे काया का , काया काँच समान।
Anil chobisa
आजादी..
आजादी..
Harminder Kaur
लांघो रे मन….
लांघो रे मन….
Rekha Drolia
कुछ यादें कालजयी कवि कुंवर बेचैन की
कुछ यादें कालजयी कवि कुंवर बेचैन की
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
भरत
भरत
Sanjay ' शून्य'
2621.पूर्णिका
2621.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
दोहा
दोहा
Ravi Prakash
शुरुआत जरूरी है
शुरुआत जरूरी है
Shyam Pandey
हमें
हमें
sushil sarna
Loading...