घर से दुर
से़ाचा कुछ दिन गांव चलु.
घर से दुर आराम करु.
खेतों की पगडंडी पर.
बाबा की उस मिट्टी पर.
सपनों का दिदार करु.
सोचा कुछ दिन गाँव चलु.
यह शहर की आबोहवा.
बेचैन यू ही कर देती हैं.
किताना चाहुं घर की डोयङी.
सपनो का दिदार करु.
सोचा कुछ दिन गाँव चलु.
सपनों में खो दिया खुद को.
गाँव की यादों से व्यपार करु.
बिसर ना पाई शहरी माया.
सपनो का दिदार करु.
अवधेश कुमार राय