ग्रामपंचायती फंड
ग्राम पंचायती फंड,
तेज कितना कितना मंद
जनता खाये सुखी रोटी,
मुखिया जी गुलकंद।
आगे पीछे डोल रहे,
कुछ गुण्डे कुछ संत
जिसको धर्म का भान नही,
वहीं बना महंत।
नित्य नगर में चल रहा,
सियासी प्रपंच।
मुखिया अस्मत लुटता,
देख रहा सरपंच।
एक बार मुखिया बनो,
सभी दुखों का अंत
लक्ष्मी का हो आगमन,
बने रहो महंत।
मनोकामना पूर्ण हो,
नही कसे कोई तंज,
इसी बहाने पूर्ण हों
काज दोई एक पंथ।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”