गीत
मत ह्रदय से गीत गाओ आज तुम
रहने भी दो
मौन मन की बात मत दिल में जगाओ
रहने भी दो
उषा का साथ भी पल भर निशा के साथ ही था
रहने भी दो
लक्षणा और व्यंजना अब छोड़ दो
रहने भी दो
ह्रदय के तार की झन-झन ध्वनि की चोट को
रहने भी दो
उर का जगत-जंजाल भी चोटिल न हो
रहने भी दो
अब पुरानी बातें भी मन में कभी आती नहीं
रहने भी दो
रिश्तों के धागे जिद्द पर काफी अड़े हैं छोड़ दो
रहने भी दो
ह्रदय से याद सब करते रहें मन से बहुत है
रहने भी दो
नीरस जगत् से और क्या उम्मीद हो सबको यूँ ही
रहने भी दो
तुम जगत् के,जगत् तेरा,मैं भटकता सा पथिक
ह्रदय का व्यापार कर दो,मुक्त जीवन-हार कर दो,छोड़ दो
रहने भी दो,रहने भी दो।।