ग़ज़ल
राहों में प्यार की तो सदा बेकली मिली
चैन -औ सुकून की न मुझे ज़िन्दगी मिली
?
पीता रहा बुझाने को ये प्यास मैं मगर
हर जाम से मुझे तो नई तिश्नगी मिली
?
भाई से बढ़ के चाहा जिसे हमने आज तक
उस दोस्त से हमें तो फकत दुश्मनी मिली
?
मायूसियों के शह्र में थी तीरगी मगर
यादों की तेरी शम्मा वहां भी जली मिली
?
जब भी शुरू हुआ है मुहब्बत का सिलसिला
दीवार मज़हबी तो वहां पर खड़ी मिली
?
ये कहकशां ओ चांद सितारों के साथ मैं
हमको तो तेरे प्यार की वो चांदनी मिली
?
मिलता हे कौन सच्चा यहाँ दोस्त आज कल
में खुश नसीब हूँ के तेरी दोस्ती मिली
?
महबूब के चमन मे जो “प्रीतम क़दम पड़े
कलियों को फिर से आज नई ताज़गी मिली
?
प्रीतम राठौर भिनगई
श्रावस्ती (उ०प्र०)