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16 Aug 2017 · 1 min read

गर मै….

गर मै हवा होती,
चहुँ ओर मै बहती रहती,
कभी अलसाई सी,
कभी पगलाई सी,
तुम चक्रवात से पीछे आते,
मुझको ख़ुद मे समाते,
अल्हड़,
मदमस्त।

गर मै होती कोई पर्वत,
ऊँची, आसमान तक,
शुभ्र श्वेत सी,
थोड़ी कठोर सी,
तुम बादल बन मुझे घेर जाते,
प्रेम-प्यार से मुझको सहलाते,
विस्तृत,
असीम।

गर मै होती फूल कोई,
छुई मुई और इतराई,
शर्मीली सी,
नाज़ुक सी,
तुम भौंरा बन आते,
इर्द-गिर्द मेरे मंडराते,
दीवाने,
मस्ताने।

गर मै होती जो धरती,
बंजर, बेजान, टूटी फूटी,
रेगिस्तान सी,
रूक्ष, शुष्क सी,
तुम बारिश बन आते,
ज़ख़्मों पर मेरे मरहम लगाते,
प्रबल,
अविरल।

गर मै चंदा होती,
सितारों के बीच जगमग करती,
सुहागन की बिंदिया सी,
स्याह आसमाँ के माथे पर दमकती सी,
तुम तब मेरे सूरज बनते,
मुझे तपाते और चमकाते,
रोशन,
प्रज्वलित ।।

©®मधुमिता

Language: Hindi
1 Comment · 298 Views
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