” गड्ढे गड्ढे हिचकोले है , सड़कें खो गई ” !!
सड़क किनारे घर हैं ,
पोखर पोखर पानी !
यह विकास की गाथा ,
घर घर कहे कहानी !
सरकारी लेखे में तो है –
बातें बो गई !!
छप छप करते बच्चे ,
वाहन करे छपाक !
राजनीति को प्रणाम ,
रौब दाब और धाक !
बेचारा सा यहां प्रशासन –
आपे खो गई !!
खेती घटा मुनाफा ,
कृषक चढ़ रहे सूली !
पूंजी परदेसी है ,
यों ऊंचाई छू ली !
बैंक वसूली बढ़ती डूबत-
नीति धो गई !!
नोटबन्दी , जीएसटी ,
अब कहें सुधारबन्दी !
रोज़गार घटता सा
है उद्योगों में मंदी !
घोटाले हो रहे उजागर –
आँखें रो गई !!
बृज व्यास