कविता: ?? मुस्क़राया करो??
मायूसी न तुम कभी,गले लगाया करो।
ज़िन्दगी में हरपल,बस मुस्क़राया करो।।
हर समस्या का हल,आज नहीं तो कल।
कीमती मोती आँसू,व्यर्थ न बहाया करो।।
तम कुछ पल का,उजाला भूतल का है।
ख़ुद समझो तुम ये,फिर समझाया करो।।
श्रेष्ठ कृति विधाता की,तुम एक हो मनु।
इस बात को सिद्ध,कर भी दिखाया करो।।
अहं गले की घंटी,कभी न बाँधना यारा।
सादेपन पर कभी तो,तुम भी आया करो।।
बहन तेरी मेरी नहीं सबकी होती है बंधु!
यूँ बदनामी करके भी,न तुम हर्षाया करो।।
काजल आँखों से न,किसी का बिखरे यूँ।
क़सम कभी तो यह,तुम भी उठाया करो।।
तेरी मेरी नहीं बंधु,इंसानियत की ये बात।।
सुनकर पलभर में,आगे पग बढ़ाया करो।।
“प्रीतम”यार मेरे’सुन!तुम पर ही भरोसा है।
किसी बात पर तुम,दोस्त!न इतराया करो।।
……..राधेयश्याम बंगालिया”प्रीतम”
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