?•अपनी ग़लतियों से…?
अपनी ग़लतियों से हर वक्त सीखता हूँ।
दूसरों की आलोचना पर स्वस्थ रहता हूँ।।
असफल वही होते हैं जो परीक्षा देते हैं।
नदारद की गिनती मैं कभी नहीं करता हूँ।।
चलोगे तो फिसलोगे कभी गिरोगे भी तुम।
ऐसो के लिए उठने की मैं प्रेरणा बनता हूँ।।
रणवीर रण में ही अपना कौशल दिखाते हैं।
अपने मुँह मिया मिट्ठू को वीर नहीं कहता हूँ।।
कोशिशें करें,गिर कर संभलें सच्चे सिपाही।
हिम्मत न हारने वालों की तारीफ़ें करता हूँ।।
पर्वत चढ़ने वाले तो झुककर ही चढते हैं।
सीधा चलने वालों को तो ज़मीं पर देखता हूँ।।
मेरा फलसफ़ा है इस हाथ दे उस हाथ ले।
ऐसे बंदों में मैं व्यवहार का तज़ुर्बा ढूँढ़ता हूँ।।
प्रभु को देखना तो ग़रीबों की आँखों में है।
अमीरों की आँखों में लालची शैतान देखता हूँ।।
तृष्णा तो धोखा है,माया है सुनले बंधु मेरे।
आवश्यकता में सादगी का ज़ज्बा मानता हूँ।।
बुत
को पूजने से भगवान नहीं मिलता कभी।
नेक कर्मों के हौंसलों में भगवान देखता हूँ।।
?प्रीतम?प्रीत इंसानियत से कर इंसान से नहीं।
इंसान को रोज गिरगिट-सा बदलता देखता हूँ।।
……??राधेयश्याम प्रीतम??
…………??????