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15 May 2017 · 1 min read

??◆भावना वेग◆??

पत्थर है वह इंसान नहीं,
भावना का जिसके हृदय
में स्थान नहीं।
भाव-सरिता जिसके चित,
प्रवाहित होती रहती नित
रुकता न कहीं।

संवेदनशील चित में मद,
की खेती लहलहाती सद
फल मीठे लगें।
अर्श की राह निकले है,
झरनों-सा गिरे संभले है
भाग ज्यों जगें।

भावना नहीं यूँ पला है,
हाड-माँस का पुतला है
राबोट की तरह।
जो मौसम-सा बदला है,
व्यर्थ का वो ज़ुमला है
गिरगिट की तरह।

इंसानियत हृदय-गहना,
प्रेमवेग में सदा बहना
स्वर्ग तुल्य होता।
फूल-सा सदा हँसना,
सबके हृदय में बसना
नैतिक मूल्य होता।

भावों का चमन खिला,
हाथ से हाथ तू मिला
प्रेमी बन सच्चा।
देना सीख लेना भुला,
मदरस सबको तू पिला
नेमी बन अच्छा।

……??राधेयश्याम “प्रीतम”??

Language: Hindi
360 Views
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