??◆ये क्या हो रहा है◆??
कोई हँस रहा है,कोई रो रहा है।
तृप्त कोई नहीं,ये क्या हो रहा है।।
लक्ष्य पता न ख़ुद की ही ख़बर है,
लगता है हर कोई,जीवन ढ़ो रहा है।।
आगे बढ़ने की होड़,रिश्ते भुलाती है।
माया के चक्कर मे,सब खो रहा है।।
साथ सफ़र में नहीं,धोखा ज़िगर में।
माला के मनके-सा,बस पिरो रहा है।।
ख़ुद की करे वाह,दूसरे की हो स्वाह।
बीज घृणा का ऐसा,हृदय बो रहा है।।
चाल-चलन कच्चा,झूठा,नहीं है सच्चा।
ज़हर दुर्भावना का,ऐसा संजो रहा है।।
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राधेयश्याम….बंगालिया….प्रीतम….कृत