??देती है मज़ा फिर जीत??
मेरी जान ले ले चाहे प्यार की ख़ातिर।
बस एकबार मुस्क़रादे यार की ख़ातिर।।
अर्श पर देख सूरज कैसे चमक रहा।
खुद को जलाकर संसार की ख़ातिर।।
चारों दिशाओं में फैली है ख़शबू यार।
फूल हँस रहें हैं गुलज़ार की ख़ातिर।।
दिनभर जला है हिज़्र में दीवाना सुन।
चकोर ये चाँद के दीदार की ख़ातिर।।
चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
क्यों बैठा उदास तू तक़रार की ख़ातिर।।
ज़िन्दगी नदिया सुख-दु:ख किनारे हैं।
कर सफ़र सागर के प्यार की ख़ातिर।।
हारकर बाजी”प्रीतम”सीखले तू जीतना।
देती है मज़ा जीत फिर हार की ख़ातिर।।
राधेश्याम “प्रीतम”
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